राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्

   (भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय)

परिचय

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद पूरे देश में अध्यापक शिक्षा के नियोजित और समन्वित विकास को प्राप्त करने और अध्यापक शिक्षा के लिए मानदंडों और मानकों का विनियमन और उचित रखरखाव की व्यवस्था करने के अधिदेश के साथ रा.अ.शि.प. अधिनियम, 1993 के अनुसरण में भारत सरकार के एक सांविधिक निकाय के रूप में, 17 अगस्त, 1995 को अस्तित्व में आयी थी। यह संगठन एक अखिल भारतीय क्षेत्राधिकार है और इसमें 4 क्षेत्रीय समितियों जैसे उत्तरी क्षेत्रीय समिति, पूर्वी क्षेत्रीय समिति, दक्षिणी क्षेत्रीय समिति और पश्चिमी क्षेत्रीय समिति के साथ-साथ विभिन्न प्रभाग शामिल हैं जो नई दिल्ली में स्थित हैं। रा.अ.शि.प. द्वारा किए जाने वाले कार्यों का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जिसमें सभी अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम जैसे प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (डी.एल.एड), शिक्षा स्नातक (बी.एड), शिक्षा में स्नातकोत्तर (एम.एड) आदि शामिल हैं। इसमें एनईपी 2020 के अनुरूप नई स्कूल प्रणाली के आधारभूत, प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए छात्रों-अध्यापकों का अनुसंधान और प्रशिक्षण शामिल है।

रा.अ.शि.प. को एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है और इसने विभिन्न राष्ट्रीय अधिदेश जैसे कि एकीकृत अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम (आईटीईपी), अध्यापकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीएसटी) और राष्ट्रीय परामर्श मिशन (एनएमएम) को अपनाया है। रा.अ.शि.प. द्वारा एनईपी 2020 के अनुरूप अन्य अध्यापक शिक्षा कार्यक्रमों यानी विनियमन, पाठ्यक्रम और डिजिटल वास्तुकला का संशोधन किया जा रहा है। देश में इस तरह की पहल के साथ रा.अ.शि.प. न केवल अध्यापकों के व्यावसायिक विकास के लिए प्रयास करती है बल्कि हमारे देश में गुणवत्तायुक्त अध्यापक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना भी है। एनईपी 2020 में सेवा-पूर्व अध्यापक शिक्षा और सेवाकालीन अध्यापक क्षमता निर्माण पर विशेष जोर देने के साथ अध्यापकों की भूमिका में आमूल-चूल परिवर्तन की परिकल्पना की गई है।

सरकार और रा.अ.शि.प. की पहल